अब डॉ. तुलसी..................

गत दिवस अमर उजाला में बंगलुरु स्थित ख्याति प्राप्त इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस (आई आई एस) से श्री तथागत अवतार तुलसी द्वारा क्वांटम सॉफ्टवेर मैं पीएचडी की उपाधि प्राप्त करने का समाचार पढ़ा तो एक बार पुनः उस चमत्कारिक प्रतिभा के लिए मन श्रद्धानवत हो गया। मैंने तुंरत फ़ोन उठाया और श्री तुलसी (अब डॉ तुलसी) को विश्व का छठवां ऐसा वैज्ञानिक, जिसने बहुत कम आयु में पीएचडी की उपाधि हासिल की, बनने के लिए हार्दिक बधाई दी।
मात्र 21 वर्ष की आयु में इतनी भरी भरकम उपलब्धि हासिल करने वाले डॉ तुलसी बातचीत में बिल्कुल सहज लग रहे थे। मैंने डॉ तुलसी को कुछ वर्ष पूर्व की गई उनकी श्री बदरीनाथ यात्रा का स्मरण दिलाया। अपनी माता श्रीमती चंचल प्रसाद व् पिता श्री तुलसी नारायण के साथ बदरीनाथ यात्रा पर गए डॉ तुलसी की आयु तब् संभवत 12 अथवा 14 वर्ष की थी। तब वह भौतिक विषय में M.Sc कर चुके थे। कम उम्र में गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रेकॉर्ड्स में नाम दर्ज करा चुके तुलसी के व्यक्तित्व में तब गंभीरता के साथ साथ बालपन की तमाम प्रवृतियां मौजूद थीं। अन्य बालकों की तरह पढ़ाई के अलावा घूमना फिरना व् खेलकूद आदि भी उनकी अभिरुचि में शामिल था। बाल जिज्ञासा का भाव उनके स्वभाव में मुखर था। बदरीनाथ के समीप भारत के अन्तिम गाव माणा में जिस तरह से उन्होंने स्थानीय समाज, संस्कृति व् परम्पराओं को जानने व् समझने की कोशिश की, वह उनकी विभिन्न तथ्यौं के बारे में जिज्ञासा को प्रर्दशित करती है। संभवत यही कारक उनकी तमाम उपलब्धियौं के पीछे विद्यमान भी है।
---अजेन्द्र अजय

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